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फल की खेती

सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद निवासी किसान ने बड़ा कमाल किया है, क्योंकि उन्होंने सूखे खेत में भी सीताफल की खेती सफल तरीके से कर लाखों कमाएँ हैं। किसान १२ लाख रुपए का मुनाफा केवल आधा एकड़ भूमि से अर्जित कर लेता है। महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद में पैठण तालुका कुछ क्षेत्रों के किसान पूर्व के कई दिनों से गीला सूखा तो कभी सूखे की मार से ग्रसित हो रहे थे, इस कारण से कृषकों को सिर्फ निराशा और हताशा हासिल हो रही थी। परंतु औरंगाबाद जनपद में धनगॉंव निवासी किसान संजय कांसे ने कठोर परिश्रम एवं द्रढ़ निश्चय से आधा एकड़ भूमि में सीताफल की खेती कर लाखों रूपये कमाए हैं और अब तक करीब उनके बगीचे में लगभग ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है।
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धनगांव निवासी संजय कांसे जी एक छोटे किसान हैं। पूर्व पारंपरिक फसल उगाने वाले संजय कांसे ने रचनात्मक सोच व कठोर परिश्रम से वर्ष २०१६ में उन्होंने अपने आधा एकड़ भूमि में सीताफल का उत्पादन किया। इसके साथ ही, अन्य क्षेत्रों में मोसंबी का रोपण किया गया है, जिसमें संजय कांसे ने सोलह बाई सोलह फुट पर ६०० पौधों की रोपाई की। उन्होंने इस दौरान सूखाग्रस्त जैसे संकटों का भी सामना किया। लेकिन उन्होंने इससे निपटने हेतु उचित मार्ग विकसित किया और बाग की साही योजना के अनुरूप भली भांति देख भाल की। अब उनकी अड़िग मेहनत और द्रण निश्चय के परिणामस्वरूप एक पेड़ करीब ३५ से ४० किलो फल प्रदान कर रहा है।
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संजय कांसे को फल का क्या भाव मिल रहा है

महाराष्ट्र का किसान संजय कांसे तीन वर्ष से अच्छी खासी पैदावार उठा रहा है। इस वर्ष उन्होंने आधा एकड़ भूमि में सीताफल की फसल उत्पादित की है, जो कि करीब 20 टन हुई है। पंद्रह दिन पूर्व संजय कांसे के पहले और दूसरे फल की छटाई हुई है। इसमें उन्हें ११० रुपये प्रति किलो के हिसाब से भाव प्राप्त हुआ है। संजय कांसे वार्षिक १२ लाख का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। अभी तक करीब ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है। साथ ही अन्य फलों का भी उत्पादन करीब ९ से १० टन तक होगा।

कितना आया लागत खर्च

बतादें कि कटाई के चौथे दिन संजय कांसे के खेत में सीताफल बिलकुल तैयार हो चुके थे। सीताफल करीब ५०० से ७०० ग्राम का रहता है। किसान ने इसकी खेती हेतु करीब ८० से ९० रुपये व्यय किये हैं। मिलीबग रोग के अतिरिक्त अन्य किसी कीटों का प्रकोप सीताफल पर नहीं होता है, यह इसकी मुख्य विशेषता है। लेकिन इस वर्ष जब अत्यधिक बारिश के कारण फलीय स्थिरता बेहद डगमगा गयी, परंतु कृषि के क्षेत्र में अच्छी जानकारी रखने वाले लोगों से जानकारी प्राप्त कर संजय कांसे ने सफलतापूर्वक खेती की।
अनार की खेती (Pomegranate Farming Info in Hindi)

अनार की खेती (Pomegranate Farming Info in Hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे, अनार फल की जिसमें विभिन्न प्रकार के औषधि गुण मौजूद होते हैं। अनार एक बहुत ही फायदेमंद फल है यह दिखने में लाल रंग का होता है, इसमें बहुत सारे छोटे छोटे लाल रंग के रस भरे दाने होते हैं। अनार (Pomegranate) को विभिन्न प्रकार के नाम से जाना जाता है, अनार को बहुत से लोग बेदाना भी कहते हैं। अनार के पेड़ में फल आने से पहले अनार के बड़े लाल लाल फूल आते हैं जो बेहद ही खूबसूरत लगते हैं।

अनार के फल की खेती

अनार की खेती बहुत से क्षेत्रों में होती है, लेकिन अनार की मुख्य पैदावार भारत के महाराष्ट्र में होती है। अनार की पैदावार के लिए मुख्य राज्य जैसे: हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात आदि क्षेत्रों में अनार की पैदावार छोटे स्तर पर की जाती है बगीचे द्वारा, अनार के रस बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं, स्वादिष्ट होने के साथ इसमें कई तरह के औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं। अनार के उत्पादन की बात करें, तो भारत में अनार का क्षेत्रफल लगभग 113.2 हजार हेक्टेयर उत्पादन तथा इनमें करीब 745 हजार मैट्रिक टन और उत्पादकता 6.60 मैट्रिक टन प्रति हेक्टेयर की खेती होती हैं।

अनार के लिए जलवायु

किसान अनार की पैदावार के लिए उपोष्ण जलवायु सबसे अच्छी बताते हैं। क्योंकि अनार उपोष्ण जलवायु का पौधा होता है। अनार को उगाने के लिए सबसे अच्छी जलवायु अर्द्ध शुष्क जलवायु होती हैं, इस जलवायु में अनार की पैदावार काफी अच्छी उगाई जा सकती है। अनार के फलों का अच्छी तरह से विकास और पूर्ण रूप से पकने के लिए गर्म वातावरण तथा शुष्क जलवायु की बहुत ही जरूरत होती है। अनार के फलों की मिठास को बनाए रखने के लिए अच्छे तथा लंबे समय तक तापमान का उच्च रहना आवश्यक होता है। आर्द्र जलवायु के कारण फलों की गुणवत्ता को काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है। अनार की खेती किसान समुंद्र तल से लगभग 500 मीटर से ज्यादा ऊंचे स्थानों पर करते हैं। अतः या जलवायु अनार की पैदावार को काफी अच्छा बढ़ावा देती है। 

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अनार के लिए मिट्टी का चयन

किसानों के अनुसार आप अनार को किसी भी मिट्टी में उगा सकते हैं, परंतु इसके अच्छे विकास और अच्छी फसल, तथा जल निकास के लिए जो सबसे अच्छी मिट्टी है। वह रेतीली दोमट मिट्टी है, या मिट्टी अनार की फसल के लिए सबसे सर्वोत्तम मानी जाती है।

अनार के पौधों की सिंचाई

अनार के पौधों के लिए सिंचाई बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, परंतु अनार के पौधे बहुत ही सूखे और सहनशील पौधा होता है। अनार के पौधों की सिंचाई के लिए मई का महीना सबसे अच्छा होता है, आप को मई से लेकर मानसून आने तक पूर्ण रूप से पौधों की सिंचाई करनी होती है। 10 से 15 दिनों के बीच पौधों की सिंचाई करनी चाहिए, क्योंकि वर्षा ऋतु होने के बाद फलों का काफी अच्छी मात्रा में विकास होता है। कई प्रकार की तकनीकों द्वारा किसान सिंचाई करते हैं जैसे ड्रिप, यदि जब आप ड्रिप से सिंचाई करें, तो इसकी आवश्यकता अनुसार ही करें। ड्रिप सिंचाई अनार की फसल के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी साबित होती है। इसमें लगभग 40% पानी की बचत होती है तथा 30 से 35% उपज में वृद्धि भी होती है।

अनार के पौधों की सधाई

अनार के पौधों के लिए सधाई बहुत ही जरूरी होती है, इनके अच्छे विकास के लिए सधाई आप दो तरह से कर सकते हैं यह दो प्रकार निम्नलिखित है :

  • एक तना पद्धति की सधाई

इस प्रकार की सधाई में किसान एक तने को छोड़कर जो सभी बाहरी टहनियां होती है, उन सभी टहनियों को किसी तेज औजार द्वारा काटकर अलग कर देते हैं। यह सभी पद्धति द्वारा जमीन में बहुत सारे सतह से अधिक सकर को निकालती है। इस क्रिया द्वारा पौधा झाड़े नुमा हो जाता है। कभी-कभी इस विधि को अपनाकर तना छेदक का अधिक होने का भय भी बना रहता है। यदि हम इस पद्धति को व्यावसायिक उत्पादन की दृष्टिकोण से देखें तो यह बहुत ज्यादा उपयुक्त नहीं होती।

  • बहु तना पद्धति की सधाई

इस विधि में अनार के पौधों को इस प्रकार से सधाई किया जाता है, कि इस क्रिया द्वारा 3/4 तने को छोड़कर सभी टहनियों को काटकर अलग कर दिया जाता है। इस स्थिति में प्रकाश की अच्छी रोशनी पौधों पर पड़ती है जिसकी वजह से पेड़ पौधों में फूल और फल की अच्छी मात्रा आना शुरू हो जाती है।

अनार की तुड़ाई

अनार स्वाद में मीठे तथा इस में मौजूद पोषक तत्व इसको लोकप्रिय फल बनाते हैं, इसकी तुड़ाई कम से कम 120 दिन से लेकर 130 दिन के बाद करनी चाहिए। अनार को नान-क्लामेट्रिक फल भी कहा जाता हैं। अनार को तोड़ने से पहले यह जरूर देख लेना चाहिए, कि अनार पूर्ण रुप से पक गए हैं कि नही तभी इनकी तुड़ाई करें।

अनार में फल फटने का रोग

अनार के फल फटने का रोग किस कारण होता है, ऐसी कौन सी कमी होती है जिसकी वजह से अनार के फल फट जाते हैं, यदि आप इस चिंता से जूझ रहे हैं, तो हम आपको इस की सही वजह बताते हैं जिससे आपको इन फलों के फटने का कारण पता चल जाएगा।

  • अनार के फलों के फटने का मुख्य कारण, किसी भी समय अचानक से सिंचाई देना इसका मुख्य कारण है।
  • जब तापमान में अचानक से परिवर्तन आता है तो भी फल फटने का भय बना रहता है।
  • कुछ ऐसे तत्व हैं जैसे बोरॉन और कैल्शियम जिनकी कमी के कारण फल फट जाते हैं।
  • कभी-कभी अचानक से गर्म हवाएं भी चलती है जिसकी वजह से फलों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है और फलों में फटने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

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अनार के पौधे की देखभाल :

अनार के पौधों की देखभाल करने के लिए किसान पौधों में गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं और इनमें उर्वरक भी डालते हैं। उर्वरक पौधों की गुणवत्ता को बढ़ावा देता है। किसान अनार के पौधों की देखभाल के लिए और उनकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए 600 से 700 ग्राम यूरिया तथा 200 ग्राम सुपर फास्फेट और 200 से 250 ग्राम पोटेशियम सल्फेट को मिलाकर करीब साल भर में डालना चाहिए। अनार के पेड़ों में पानी की मात्रा देते वक्त इन विभिन्न प्रकार की बातों का ध्यान रखें। कि पौधों के आसपास ज्यादा गड्ढे में पानी न भरे, जिसकी वजह से अनार की जड़ें कमजोर हो जाए, पानी पूर्ण रूप से निकास का मार्ग बनाए रहे। इन बातों का ख्याल जरूर रखें वरना जड़े गल कर कमजोर हो जाएंगी।

अनार में पाए जाने वाले विटामिन

अनार में एक नहीं बल्कि कई तरह के विटामिन पाए जाते हैं, अनार खाने से त्वचा और बालों को बेहद फायदा होता है, त्वचा चमकती रहती हैं, और बालों की ग्रोथ अच्छी होती है। अनार में विटामिन के, सी बी के साथ - साथ आयरन, और फाइबर, जिंक, पोटेशियम, ओमेगा यह 6 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं। यह सभी आवश्यक तत्व शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ही साथ काम करने की क्षमता को भी बढ़ाते हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारी यह पोस्ट अनार से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारियों से आप संतुष्ट हुए होगे, यदि आपको हमारी दी हुई यह जानकारियां अच्छी लगी हों, तो हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

महाराष्ट्र के किसान महेश ने इस फल की खेती कर कमाया लाखों का मुनाफा

महाराष्ट्र के किसान महेश ने इस फल की खेती कर कमाया लाखों का मुनाफा

कृषि अपने देश की रीढ़ की हड्डी है। यहां की अधिकांश जनसँख्या खेती किसानी पर निर्भर रहती है। कुछ लोग कृषि को एक व्यर्थ व्यवसाय के रूप में देखते हैं। क्योंकि उनको कृषि करने का तरीका और सलीका अच्छी तरह से पता नहीं होता है। देश में ऐसे बहुत से किसान हैं जो कि प्रति वर्ष खेती के जरिये लाखों का मुनाफा कमाते हैं। लेकिन उनकी कृषि करने की विधि और तकनीक आम किसानों से अलग होती है। आजकल नवीन तकनीक और आधुनिक उपकरणों की कोई कमी नहीं है। सबसे मुख्य बात यह है, कि उनका सही तरीके से सोच समझकर उपयोग किया जाए, तो खेती से उत्तम पैदावार अवश्य ली जा सकती है। आज हम बात करने वाले हैं, एक ऐसे किसान की जो कि अपनी सूझ-बूझ से बेहतरीन फायदा उठा रहा है। महाराष्ट्र राज्य के महेश बालाजी ने मात्र एक बार चीकू की खेती करके 5 लाख रुपए की आमदनी करली है। देश की खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने से लेकर लोगों की आजीविका के लिए धन अर्जन हेतु कृषि क्षेत्र का अपना विशेष महत्त्व है। किसानों को खेती से अच्छी पैदावार मिलने और मुनाफा होने की हर बार आशा होती है। लेकिन आंधी, तूफ़ान, बाढ़, अत्यधिक बरसात और आवारा पशु जैसी आपदाओं की वजह से किसानों को निराशा और हतासा ही मिलती है। इसलिए कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञों का हमेशा कहना होता है, कि किसान बिना किसी आधुनिक विधि और नवीन तकनीक का प्रयोग किए बगैर अच्छा उत्पादन प्राप्त नहीं कर सकते। क्योंकि खेती बहुत सारे आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से घिरी होती है। अगर आपको कृषि के जरिए मोटा दाम कमाना है, तो आपको पारंपरिक विधि को छोड़ आधुनिक विधि अपनानी आवश्यक है। महेश बालाजी ने भी एक ऐसी ही मिसाल पेश की है।

महेश चीकू के उत्पादन से लाखों कमा रहा है

महेश बालाजी ने चीकू का उत्पादन करके 5 लाख रुपए की आय अर्जित की है। महेश बालाजी सूर्यवंशी महाराष्ट्र के लातूर में हरंगुल खुर्द गाँव के निवासी हैं।
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वहाँ पर महेश ने लगभग डेढ़ एकड़ भूमि के हिस्से में चीकू की फसल का उत्पादन किया है। उन्होंने चीकू की फसल की बुवाई, सिंचाई उर्वरकों का अच्छे से छिड़काव आदि आवश्यक कार्य बड़ी ही कुशलता से किए हैं। जिसके परिणामस्वरूप उनको बहुत ही अच्छा उत्पादन मिलता है।

महेश ने मात्र 120 पौधों से लाखों का उत्पादन लिया

किसान महेश बालाजी का कहना है, कि उन्होंने 6 वर्ष पूर्व ही चीकू के 120 पौधों का रोपण कर दिया था। रोपण के 4 वर्ष उपरांत फल लगना आरंभ हो गया था। मंडियों या बाजार में इनके द्वारा उत्पादित फल 60 रुपए प्रति कि.ग्रा. के भाव से बिका है। फल को तैयार करने में आये खर्च की ओर देखें तो इनके उर्वरक और सिंचाई इत्यादि में करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च हो गए थे। खर्च के अतिरिक्त केवल मुनाफा की बात करें तो महेश बालाजी ने 5 लाख का मुनाफा अर्जित किया है।

देश में चीकू की खेती का कितना रकबा है

भारत के विभिन्न राज्यों में 65 हजार एकड़ रकबे में चीकू का उत्पादन होता है। जिनके अंतर्गत महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तामिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में चीकू की अधिकांश खेती की जाती है। साथ ही, चीकू की वार्षिक पैदावार तकरीबन 5.4 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हो जाता है। चीकू के उत्पादन हेतु काली, गहरी जलोढ़, रेतीली दोमट सहित बेहतर उपज वाली मृदा में रोपण काफी अच्छा रहता है। साथ ही, चीकू की खेती करने हेतु मृदा को भुरभुरा करके 2-3 बार जुताई के उपरांत भूमि को एकसार करना होता है ।
कीवी की खेती से प्रति हेक्टेयर कितने लाख की आमदनी की जा सकती है

कीवी की खेती से प्रति हेक्टेयर कितने लाख की आमदनी की जा सकती है

भारत में किसान सबसे ज्यादा कीवी की एबॉट, एलीसन, बू्रनो, मोंटी, टुमयूरी और हेवर्ड प्रजाति की खेती करते हैं। क्योंकि, यह प्रजातियां यहां की जलवायु के अनुकूल हैं। कीवी एक विदेशी फल है। परंतु, वर्तमान में भारत के अंदर भी इसकी खेती चालू हो चुकी है। कीवी का सेवन करने से शरीर को भरपूर मात्रा में विटामिन एवं पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। कीवी एक एंटी-ऑक्सीडेंट एवं एंटी-इंफ्लेमेटरी फल है। इसको खाने से शारीरिक रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है। इसमें राइबोफ्लेविन, बीटा कैरोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फॉस्फरोरस, कॉपर, विटामिन बी, विटामिन सी, कैल्शियम, फाइबर, पोटैशियम और जिंक समेत विभिन्न पोषक तत्व पाए जाते हैं। यही कारण है, कि डेंगू से प्रभावित मरीजों को चिकित्सक कीवी खाने की राय देते हैं।

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कीवी की इन राज्यों में बड़े पैमाने पर खेती की जाती है

दरअसल, कीवी चीन की मुख्य फसल है। परंतु, भारत में अब कीवी की खेती चालू हो चुकी है। केरल, सिक्किम, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड और उत्तराखंड में किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती कर रहे हैं। यदि किसान भाई कीवी की खेती करते हैं, तो कम वक्त में ज्यादा मुनाफा उठा सकते हैं। ऐसी स्थिति में कीवी का भाव काफी ज्यादा होता है। यह सेब एवं संतरा की तुलना में बेहद महंगा बिकता है। इसके बावजूद भी इसकी बिक्री काफी ज्यादा होती है।

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कीवी की खेती किस तरह करें

जैसा कि उपरोक्त में बताया भारत में किसान सबसे ज्यादा कीवी की एलीसन, बू्रनो, मोंटी, टुमयूरी, हेवर्ड और एबॉट किस्म की खेती करते हैं। क्योंकि यह प्रजातियां यहां की जलवायु के अनुकूल हैं। कीवी की खेती के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। जनवरी माह में इसके पौधे लगाने पर विकास बेहतर होता है। यदि किसान भाई कीवी की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए बलुई रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी होती है। साथ ही, इसके बाग के अंदर इसके खेत में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए। इससे वृक्षों पर फल शीघ्रता से आने चालू होते हैं।

कीवी की खेती से वर्ष में कितने लाख का मुनाफा हो सकता है

यदि किसान भाई चाहें, तो अपने बाग में बडिंग विधि अथवा ग्राफ्टिंग विधि से भी कीवी के पौधे रोप सकते हैं। इसके लिए सर्वप्रथम खेत में गड्ढे खोदने पड़ेंगे। इसके पश्चात गड्ढों में लकड़ी का बुरादा, सड़ी खाद, कोयले का चूरा, बालू और मिट्टी डाल दें। इसके पश्चात चीकू के पौधे की बिजाई करें। इससे आपको उत्तम उत्पादन मिलेगा। कीवी की विशेष बात यह है, कि कीवी के फल शीघ्रता से खराब नहीं होते हैं। तोड़ाई करने के पश्चात आप इसके फल को 4 माह तक प्रिजर्व कर के रख सकते हैं। अगर आप एक हेक्टेयर में कीवी की खेती करते हैं, तो प्रतिवर्ष 12 से 15 लाख रुपये तक की आमदनी होगी।
जायफल की खेती किसान प्राकृतिक विधि से करके दोगुनी आय कर सकते हैं

जायफल की खेती किसान प्राकृतिक विधि से करके दोगुनी आय कर सकते हैं

जायफल एक नगदी फसल है। प्राकृतिक ढ़ंग से इसकी खेती कर किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। भारत देश में हर तरह की फसलों की खेती की जाती है। इस बदलते खेती के युग में फिलहाल किसान नगदी फसल की खेती की तरफ अधिक रुझान कर रहे हैं। इस नगदी फसल की खेती से मुनाफा अर्जित कर किसान संपन्न हो रहे हैं। आगे इस लेख में हम आपको ऐसी ही एक फसल जायफल की खेती के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं। इसे नकदी फसल के रूप में ही उगाया जाता है। आज कल किसान इसकी खेती प्राकृतिक ढ़ंग से कर काफी मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।

जायफल की खेती हेतु उपयुक्त मृदा

विशेषज्ञों के मुताबिक, जायफल के लिए बलुई दोमट एवं लाल लैटेराइट मृदा सबसे अच्छी होती है। इसका पीएच मान 5 से 6 के मध्य होना चाहिए। इसके बीज की बुवाई के पहले खेत की गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। ये भी पढ़े:
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जायफल की खेती हेतु उपयुक्त जलवायु

जायफल एक सदाबहार पौधा होता है। इसकी बिजाई करने के लिए 22 से 25 डिग्री के तापमान की आवश्यकता होती है। अत्यधिक गर्मी वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छे से नहीं हो पाती है। जायफल के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाते हैं।

खेत की तैयारी किस प्रकार करें

बीज की बुवाई के उपरांत खेत की बेहतर ढ़ंग से सिंचाई कर दें। इसके लिए खेत में गड्डे भी तैयार किए जाते हैं। खेत की मिट्टी पलटने के लिए हल से गहरी जुताई करें। 4 से 6 दिन गुजरने के उपरांत खेत में कल्टीवेटर की सहायता से 3 से 4 बार जुताई करें।

जायफल की फसल में आर्गेनिक खाद का उपयोग

जायफल के पौधों की बुवाई के पश्चात खेतों में लगातार उचित अंतराल पर खाद देते रहना चाहिए। खेत में गोमूत्र एवं बाविस्टीन के मिश्रण को डाल देना चाहिए। जायफल की पौध तैयार करने के लिए आर्गेनिक खाद, गोबर, सड़ी गली सब्जियों का उपयोग करना चाहिए। ये भी पढ़े: बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

जायफल से कितनी पैदावार होती है

जायफल का उत्पादन 4 से 6 साल बाद चालू हो जाती है। इसका वास्तविक लाभ 15 से 18 वर्ष उपरांत मिलना शुरू होता है। इसके पौधों में फल जून से अगस्त माह के मध्य लगते हैं। यह पकने के पश्चात पीले रंग के हो जाते हैं। इसके उपरांत जायफल के बाहर का आवरण फट कर बाहर निकल जाता है। अब आपको इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए।